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Sunday, April 2, 2023
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आपातकाल स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा काला अध्याय, पढ़े कैसा था।

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आपातकाल स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय है, जिसके दाग से कांग्रेस कभी मुक्त नहीं हो सकती। इंदिरा गांधी ने समूचे देश को जेल में परिवर्तित कर दिया था।

उस समय लोकतंत्र के लिए उठने वाली हर आवाज को निर्ममता से कुचल दिया गया था। दरअसल इंदिरा गांधी किसी भी तरीके से सत्ता में बने रहना चाहती थीं। इसके लिए वह कोई भी कीमत अदा करने को तैयार थीं। इसी बीच इलाहाबाद उच्च न्यायालय का एक निर्णय इंदिरा गांधी के लिए शामत बनकर आया, जिसमें उन्हें चुनाव धांधली के आरोप में अयोग्य करार दिया गया। परिस्थितियां कुछ इस तरह से पैदा हो गईं कि इंदिरा गांधी को त्यागपत्र देने की नौबत आ गई। दुर्भाग्य से इंदिरा गांधी ने एक ऐसा रास्ता चुना जो तानाशाही का प्रतीक बनकर इतिहास में दर्ज हो गया।

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बहरहाल, देश में आपातकाल के दौर में लोकतंत्र के सभी स्तंभों खासकर मीडिया पर पूरी तरह संजय गांधी का पहरा था। देश इस संकट से बाहर कब आएगा, लोकतंत्र का सूर्य कब उदय होगा, ऐसे सवाल यक्ष प्रश्न बनकर रह गए थे। आखिरकार 21 मार्च 1977 को लोकतंत्र की शक्ति के समक्ष इंदिरा गांधी और कांग्रेस को झुकना पड़ा, किंतु इन 21 महीनों में निरंकुशता की सारी सीमाओं को लांघ दिया गया था। लाखों लोग जेलों में बंद रहे। यातनाओं को ङोलते हुए कई लोग काल के गाल में समा गए। यह भारत के लोकतंत्र पर सबसे बड़ा आघात था, एक ऐसा आघात, जो हमेशा हमारे लोकतंत्र की सुंदरता को चिढ़ाता रहेगा। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह से पराजित हुई। इंदिरा गांधी भी चुनाव हार गईं। जनता ने देश के सत्ताधीशों को संदेश किया कि अराजकता और अधिनायकवाद को वह सहन करने वाली नहीं है। लोकतंत्र को पुनस्र्थापित करने की लड़ाई सबने अपने स्तर लड़ी, किंतु इंदिरा गांधी के इस अनैतिक, असंवैधानिक कदम को वामपंथी दल एवं उस विचार के बुद्धिजीवियों ने क्रांतिकारी कदम बताकर इसका समर्थन किया था। आज उसी जमात के लोग गत आठ वर्षो से अघोषित आपातकाल का अनावश्यक झंडा बुलंद कर रहे हैं। यह हास्यास्पद है कि जब देश की सभी संस्थाएं पूरी स्वायत्तता के साथ काम कर रही हैं, तब इस कपोल कल्पना का उद्देश्य क्या है?

मोदी सरकार तीखी आलोचनाओं को भी सहन कर जाती है, नागरिकता संशोधन कानून, कृषि कानून को लेकर देशभर में बड़ा आंदोलन हुआ। सरकार ने उनकी बात सुनते हुए दुविधा को दूर कर दिया। ताजा मामला अग्निपथ योजना को लेकर है। देशभर में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए, किंतु सरकार ने इस संबंध में फैलाए जा रहे भ्रम को दूर किया। आज हर कोई खुले मन से सरकार अथवा किसी दल की आलोचना करने को स्वतंत्र है। संयोग से ऐसा नैरेटिव गढ़ने वाले लोग ही किसी दल अथवा सरकार की बंद आंखों से आलोचना करते हुए अघोषित आपातकाल की बात करते हैं तो यह स्थिति हास्यास्पद कही जा सकती है।

भारत का लोकतंत्र समयानुसार परिपक्व होता जा रहा है। देश के युवा संविधान की महत्ता को जानने लगे हैं और अपने अधिकारों व कर्तव्यों के प्रति सजग हो रहे हैं। सैकड़ों उदाहरण आज हमारे सामने मौजूद हैं, जब एक विशेष बौद्धिक वर्ग द्वारा आपातकाल जैसा हौवा खड़े करने की कोशिश की जाती है जिनका उद्देश्य केवल वर्तमान सरकार को बदमान करना ही दिखता है। ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि भारत के लोकतंत्र पर आघात पहुंचना अब बेहद कठिन है। ऐसे घातक कदमों का क्या दुष्परिणाम होता है इसे हमारा देश व आपातकाल थोपने वाली कांग्रेस भी अच्छे से समझ गई है। अब कोई शासक ऐसे कदम उठाने की सोच भी नहीं सकता। वैसे केंद्र में अभी जिस राजनीतिक दल की सरकार है उसने आपातकाल दौर में काफी संघर्ष किया है, लिहाजा उसे उसके स्याह पक्ष के बारे में बहुत कुछ पता है।

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