देश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ भड़काऊ भाषणों के मामलों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है। सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका जमीयत उलमा-ए-हिंद और मौलाना सैयद महमूद असद मदनी ने दायर की है।
इस याचिका में हाल के दौर में दिए गए भड़काऊ भाषणों का जिक्र है। इस याचिका के जरिए मांग की गई है कि इस मामले की जांच के लिए निष्पक्ष कमेटी बनाई जाए।
हेट स्पीच को लेकर दायर इस याचिका में कहा गया है कि इस तरह के किसी भी उदाहरण के संबंध में आपराधिक कानून के तहत कोई कार्रवाई शुरू नहीं की गई। पिटिशन में पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ की गई घृणास्पद टिप्पणी का भी जिक्र किया गया है। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि साल 2018 से लेकर देशभर में कई लोगों ने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा भड़काने को लेकर टिप्पणियां की हैं।
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सुप्रीम कोर्ट में दायर इस याचिका में यूपी पुलिस द्वारा यति नरसिंहानंद सरस्वती की टिप्पणी के विरोध में 100 से अधिक मुसलमानों को गिरफ्तार किए जाने का भी जिक्र किया गया है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के 76 वकीलों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर हरिद्वार सम्मेलन के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करने की मांग की थी। इस ‘धर्म संसद’ में कथित तौर पर मुस्लिमों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी।
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यह कहते हुए कि मुस्लिम विरोधी नफरत से भरे भाषणों के मामले में पुलिस अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की, याचिका में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने में विफल होने के बारे में चिंता जताई गई है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के माध्यम से याचिकाकर्ता ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मुसलमानों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों और भाषणों के परिणामस्वरूप हिंसा हुई और कई लोगों की हत्याएं भी हुई।
इसमें कहा गया है, “उपरोक्त तथ्य दर्शाते हैं कि भड़काऊ और अपमानजनक भाषणों के जरिए से एक धार्मिक समुदाय पर हमला किया जाता है ताकि उन्हें अपनी धार्मिक प्रथाओं को छोड़ने के लिए विवश किया जा सके।” इसमें आगे कहा गया है कि उन्हें जवाबदेह ठहराए बिना यह देश में प्रशासनिक प्रक्रिया पर छोड़ दिया जाने वाला मामला नहीं है।