आज हम आपको इस्लाम की उस महिला के बारे में बताएंगे जिनको इस्लाम में पहली मुफ़्ती होने का शर्फ़ हासिल है जब उन पर तोहमत लगी तो अल्लाह ने खुद उनकी पाकदामन होने की गवाही दी आप अंदाजा लगाएं उनका मर्तबा क्या होगा हज़रत सय्यदा आयशा (र.अ) का इल्मी मकाम व मर्तबा बहुत बलंद था; चंद सहाबा को छोड कर तमाम मर्द व औरत पर उन्हें फौकियत हासिल थी।
वह बयक वक्त क़ुरआने करीम की हाफिजा तफसीर व हदीस की माहिर और मुश्किल मसाइल को हल करने में बेमिसाल ज़हानत की मालिक थीं बड़े बड़े सहाबा उन से शरीयत के अहकाम व मसाइल मालूम करते थे, हजरत अबू मूसा अशअरी (र.अ) का बयान है के जब भी हम लोगों के सामने कोई मुश्किल मस्अला पेश आता तो उसका हल हजरत आयशा से मालूम करते और वह फौरन उसका हल बता दिया करती थीं,।
इमाम जोहरी फर्माते हैं के अगर तमाम मर्दो और उम्महातुल मोमिनीन का इल्म जमा किया जाए, तो हज़रत आयशा का इल्म उन सब से ज़ियादा वसीअ होगा। कहा जाता है के दीन का चौथाई हिस्सा इन्हीं से मुतअल्लिक है। वह दीने इस्लाम और शरीअत के अहकाम को फैलाना और हुजूर (ﷺ) की तालीमात को आम करना अपनी जिन्दगी का मक्सद बना लिया था।
तकरीबन 2210 अहादीस उन से मैरवी हैं, बिलाशुबा पूरी उम्मत पर उन के बेपनाह एहसानात हैं. इसी वजह से उन्हें “मोहसिन-ए-उम्मत” कहा जाता है। सन 66 हिजरी में मदीना में इन्तेकाल फ़रमाया और रात के वक्त जन्नतुल बकी में दफ्न हुई। अल्लाह तआला उन्हें पुरी उम्मत की तरफ से बेहतरीन बदला अता फरमाए।