3.5 C
London
Thursday, April 25, 2024

बिलकिस बानो केस पर सुनवाई कोर्ट ने पूछा – सरकार दोषियों की सज़ा माफ़ी वाली फाइल दिखाने से क्यों घबरा रही है?

- Advertisement -spot_imgspot_img
- Advertisement -spot_imgspot_img

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (18 अप्रैल) को गुजरात सरकार से बिलकीस बानो मामले में 11 दोषियों को सजा माफ़ी देने के अपने फैसले के पीछे के कारणों के बारे में पूछा, साथ ही कहा कि समय से पहले दोषियों को रिहा करने से पहले अपराध की गंभीरता पर विचार किया जाना चाहिए था.

लाइव लॉ के अनुसार, जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना ने कहा कि जब समाज को बड़े पैमाने पर प्रभावित करने वाले जघन्य अपराधों में छूट पर विचार किया जाता है, तो ‘सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए शक्ति का प्रयोग किया जाना चाहिए.’

पीठ दोषियों की समय से पहले रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, 11 दोषियों की सजा की छूट पर मूल फाइलों को रिकॉर्ड पर रखने को लेकर अनिच्छा दिखाते हुए केंद्र और राज्य सरकार ने मंगलवार को इस सूचना पर विशेषाधिकार का दावा किया. सरकारों ने अदालत से कहा कि वे उसके 27 मार्च के उस आदेश की समीक्षा की मांग कर सकती हैं, जिसमें निर्देश दिया गया था कि सजा में छूट से संबंधित फाइलों को उसके अवलोकन के लिए पेश किया जाए.

दोषियों की समय से पहले रिहाई का कारण पूछते हुए पीठ ने कहा, ‘यह (छूट) एक तरह का अनुग्रह है जो अपराध के अनुपात में होना चाहिए. रिकॉर्ड देखिए, इनमें से एक को 1,000 दिन, दूसरे को 1,200 दिन और तीसरे को 1,500 दिन की पैरोल मिली है. आप (गुजरात सरकार) किस नीति पर चल रहे हैं? यह धारा 302 (हत्या) का साधारण मामला नहीं है बल्कि गैंगरेप के साथ हत्याओं का मामला है.’

पीठ ने कहा,

दोनों सरकारों की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने पीठ को बताया कि वह आदेश के अनुपालन में फाइलें लाए थे, लेकिन उन्हें यह कहने का निर्देश मिला है कि सरकार पिछले महीने के शीर्ष अदालत के आदेश की समीक्षा पर विचार कर रही है. उन्होंने अगले सोमवार (24 अप्रैल) तक का समय मांगे हुए कहा, ‘हम सूचना पर विशेषाधिकार का दावा कर रहे हैं. मैं समीक्षा दाखिल करने के लिए समय मांग रहा हूं.’

पीठ ने कहा कि सरकार समीक्षा की मांग करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन अदालत को सजा माफ़ी के लिए दिए गए कारणों और अधिकारियों द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया को देखना है. पीठ ने सवाल किया, ‘फाइलें दिखाने में क्या दिक्कत है? आपने शायद कानून के अनुसार काम किया होगा, तो आप क्यों हिचकिचा रहे हैं?’

जस्टिस जोसेफ ने आगे कहा,

असली सवाल यह है कि क्या सरकार ने अपना दिमाग लगाया, सजा माफ़ी देने के फैसले का आधार क्या था? आज मामला इस महिला (बिलकिस) का है, लेकिन कल यह कोई भी हो सकता है. यह आप या मैं हो सकते हैं. एक मानक होना चाहिए… यदि आप छूट देने के अपने कारण नहीं बताते हैं, तो हम अपने निष्कर्ष निकालेंगे.’

लाइव लॉ के अनुसार, उन्होंने आगे वेंकट रेड्डी मामले का उदाहरण देते हुए कहा कि इस केस में कानून का एक बड़ा मानक निर्धारित किया गया था.

ज्ञात हो कि वेंकट रेड्डी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में आंध्र प्रदेश में हत्या के दोषी ठहराए गए एक कांग्रेस कार्यकर्ता की सजा माफ़ी को रद्द कर दिया था. राज्यपाल के उन्हें सजा माफ़ी देने के आदेश में कहा गया था कि वो ‘अच्छे कांग्रेस कार्यकर्ता’ थे. शीर्ष अदालत ने तब कहा था कि राष्ट्रपति या राज्यपाल ‘धर्म, जाति और राजनीतिक संबद्धता के आधार पर सजा माफी की अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकते हैं और ऐसा करना कानून के शासन की घोर अवहेलना के समान होगा.’

इसके बाद पीठ द्वारा फाइलों पर विचार करने के लिए जरूरत को रेखांकित करते हुए एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि फाइलें खुद अपने लिए बोलेंगी और केंद्र और गुजरात सरकार को मामले पर जिरह करने की भी आवश्यकता नहीं होगी.

एक दोषी की तरफ से पेश हुए वकील सिद्धार्थ लूथरा ने पीठ से कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एक जघन्य अपराध था और इसीलिए उन्होंने 14 साल से अधिक समय जेल में बिताया लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे माफ़ी के हकदार नहीं हैं. .

राज्य के फैसले को चुनौती देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने कहा कि ऐसा (सजा माफ़ी) बिना कोई कारण बताए और एक विशेष सीबीआई न्यायाधीश और सीबीआई के एसपी द्वारा लिखित आपत्ति के बावजूद किया गया था.

पीठ ने मंगलवार की सुनवाई के बाद मामले को अंतिम निपटान के लिए 2 मई तक के लिए स्थगित कर दिया. इसने केंद्र और राज्य से 24 अप्रैल तक समीक्षा याचिका दायर करने को कहा.

मालूम हो कि 15 अगस्त 2022 को अपनी क्षमा नीति के तहत गुजरात की भाजपा सरकार द्वारा माफी दिए जाने के बाद बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे सभी 11 दोषियों को 16 अगस्त को गोधरा के उप-कारागार से रिहा कर दिया गया था.

शीर्ष अदालत द्वारा इस बारे में गुजरात सरकार से जवाब मांगे जाने पर राज्य सरकार ने कहा था कि दोषियों को केंद्र की मंज़ूरी से रिहा किया गया. गुजरात सरकार ने कहा था कि इस निर्णय को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंजूरी दी थी, लेकिन सीबीआई, स्पेशल क्राइम ब्रांच, मुंबई और सीबीआई की अदालत ने सजा माफी का विरोध किया था.

अपने हलफनामे ने सरकार ने कहा था कि ‘उनका (दोषियों) व्यवहार अच्छा पाया गया था’ और उन्हें इस आधार पर रिहा किया गया कि वे कैद में 14 साल गुजार चुके थे. हालांकि, ‘अच्छे व्यवहार’ के चलते रिहा हुए दोषियों पर पैरोल के दौरान कई आरोप लगे थे.

एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि 11 दोषियों में से कुछ के खिलाफ पैरोल पर बाहर रहने के दौरान ‘महिला का शील भंग करने के आरोप’ में एक एफआईआर दर्ज हुई और दो शिकायतें भी पुलिस को मिली थीं. इन पर गवाहों को धमकाने के भी आरोप लगे थे.

दोषियों की रिहाई के बाद सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में जेल से बाहर आने के बाद बलात्कार और हत्या के दोषी ठहराए गए इन लोगों का मिठाई खिलाकर और माला पहनाकर स्वागत किया गया था. इसे लेकर कार्यकर्ताओं ने आक्रोश जाहिर किया था. इसके अलावा सैकड़ों महिला कार्यकर्ताओं समेत 6,000 से अधिक लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से दोषियों की सजा माफी का निर्णय रद्द करने की अपील की थी.

उस समय इस निर्णय से बेहद निराश बिलकीस ने भी इसके बाद अपनी वकील के जरिये जारी एक बयान में गुजरात सरकार से इस फैसले को वापस लेने की अपील की थी.

गौरतलब है कि 3 मार्च 2002 को अहमदाबाद के पास एक गांव में 19 वर्षीय बिलकीस बानो के साथ 11 लोगों ने गैंगरेप किया था. उस समय वह गर्भवती थीं और तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. हिंसा में उनके परिवार के 7 सदस्य भी मारे गए थे, जिसमें उसकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी.

- Advertisement -spot_imgspot_img
Ahsan Ali
Ahsan Ali
Journalist, Media Person Editor-in-Chief Of Reportlook full time journalism.

Latest news

- Advertisement -spot_img

Related news

- Advertisement -spot_img