26 दिसम्बर, 530 ई. में बाबर की मौत के बाद 29 दिसम्बर,
530 ई. को 23 वर्ष की उम्र में हुमायूँ की ताजपोशी की गयी।
बाबर ने हुमायूँ को जानशीन मुक़र्रर करने के साथ-साथ यह भी
हुक्म दिया था की वह अपनी वसीह सल्तनत को अपने भाइयों में
बराबरी से बॉट ले ताकि भाइयों में आपस में लड़ाई न हो।
इसलिए हुमायूँ ने अस्करी को सम्भल, हिन्दाल को मेवात और
कामरान मिर्ज़ा को पंजाब की सूबेदारी दे दी। सल्तनत का इस
तरह से किया गया बंटवारा हुमायूँ की सब बड़ी भूल साबित
हुयी। जिसके कारण उसे आगे चलकर बहुत कठिनाइयों का
सामना करना पड़ा। कामरान मिर्जा आगे जाकर हुमायूँ के कड़े
प्रतिद्वंद्वी बने। आगे चल कर हुमायूँ के किसी भाई ने उसका साथ
नहीं दिया। वास्तव में सल्तनत का गलत तरीके से किया गया
बंटवारा, हुमायूँ के लिए बहुत घातक साबित हुआ। उसके सबसे
बड़े दुश्मन अफ़ग़ान थे लेकिन भाइयों का असहयोग और हुमायूँ
कि कुछ जाती कमज़ोरियाँ उसकी नाकामी की वजह साबित
हुईं।
शेर शाह सूरी के हाथों हारने के बाद हुमायूँ हुक्मरानी से हाथ घो
बैठे इसके बाद उन्हे 5 साल तक जिला वततनी में गुजरने पड़े
और जब 5 साल बाद जब उन्हें दोबारा सत्ता मिली तो उसके
साल बाद तक ही वह जिन्दा रह पाए। जनवरी, 556 ई. में
दीनपनाह’ में स्थित लाइब्रेरी की सीढ़ियों से गिरने के तीन दिनों
बाद 27 जनवरी, 556 ई. में हुमायूँ की मौत हो गयी।
हुमायूँ की ज़िंदगी भी जंग और कई सारी मुहिमात में गुज़री उसने
बहुत से इलाकों को फ़तेह कर के अपनी सल्तनत के अधीन
किया था।