नई दिल्ली: शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर रोक लगाने के कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाकर्ताओं के वकील ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अगर पगड़ी को अनुमति दी जा सकती है तो हिजाब को क्यों नहीं?
कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर पेश वरिष्ठ वकील यूसुफ मुछला ने कहा कि हिजाब पहनने वाली महिलाओं को कार्टून की तरह नहीं देखा जाना चाहिए। ये मजबूत इच्छाशक्ति वाली महिलाएं हैं और कोई भी अपने फैसले को उन पर नहीं थोप सकता है।
हिजाब पहनना अधिकार
जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने सवाल किया कि क्या उनका मुख्य तर्क यह है कि यह एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है। इस पर मुछला ने कहा कि उनका तर्क यह है कि अनुच्छेद 25(1)(ए), 19(1)(ए) और 21 के तहत यह उनका अधिकार है और इन अधिकारों को संयुक्त रूप से पढ़ने पर, उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।
हिजाब पर आपत्ति क्यों..?
मुछला ने कहा कि ये छोटी बच्चियां अपने सिर पर कपड़े का छोटा टुकड़ा रखकर क्या गुनाह कर रही हैं? अगर पगड़ी पहनने पर आपत्ति नहीं और यह विविधता के लिए सहिष्णुता को दर्शाता है तो हिजाब पर आपत्ति क्यों।
हाई कोर्ट के पास नहीं था कोई विकल्प
मुछला ने कहा कि हिजाब मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट को कुरान की व्याख्या नहीं करनी चाहिए थे, क्योंकि इसमें उससे विशेषज्ञता हासिल नहीं है। इस पर पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट के पास कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि यह अनिवार्य धार्मिक प्रथा है।
खुर्शीद ने कहा, यूनिफार्म के ऊपर हिजाब में बुराई क्या
कुछ अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद से पीठ ने सवाल किया कि उनके हिसाब से क्या हिजाब अनिवार्य धार्मिक प्रथा है। खुर्शीद ने कहा कि इसे धर्म, अंतरात्मा और संस्कृति के साथ ही व्यक्तिगत गरिमा और निजता के रूप में देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि यूनिफार्म को लेकर किसी को कोई आपत्ति नहीं है।
अब 14 सितंबर को सुनवाई
खुर्शीद ने कहा कि यहां सवाल यह है कि क्या कोई यूनिफार्म के ऊपर अपनी संस्कृति के लिए महत्वपूर्ण कुछ और पहन सकता है या नहीं। विस्तृत दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 14 सितंबर को निर्धारित की। उस दिन भी दलीलें रखी जाएंगी।