2 जनवरी 1492 को गरनाता ( उंदलुस, स्पेन ) से मुस्लिम हुकूमत खत्म होती है और आखिरी बादशाह जो मशहूर अंसारी सहाबी हज़रत सअद बिन उबादा के वंशज थे अपने महल से रोते हुए निकलते हैं
उसके बाद स्पेन वालों पर धुन सवार होता है कि गुलामी की निशानी को बाकी नहीं रखना है और मुसलमानों के बसाए शहर राजमहल क़िले सब तोड़ दिए जाते हैं मस्जिदें मिस्मार कर दी जाती है घरों में आग लगा दी जाती है मुल्लों का नाम इतिहास के पन्नों से मिटा दिया जाता है जैसा पागल पन आज भारत के कुछ लोगों पर सवार है वहां भी सवार हुआ और सब नष्ट कर दिया गया

लेकिन इधर लगभग पचास वर्षों से उन में बदलाव आया है अब वह पछता रहे हैं वह देख रहे हैं कि इतिहास में हमारा सबसे सुनहरा दौर तो वही था जब यह मुसलमानों का शासन था अब वह अपने उस दौर पर गर्व कर रहे हैं
स्पेन सरकार हर साल बजट में एक हिस्सा रखती है जिसमें मुसलमानों के दौर की इमारतों का नवीनीकरण किया जाता है अल ज़हरा सिटी जो कभी खंडर बन गई थी अब उसके एक बड़े भाग का नवीनीकरण हो चुका है
मशहूर मुस्लिम शख्सियतों के बारे में किताबें लिखी जा रही हैं उनकी निशानियां ढूंढी जा रही हैं राजाओं बुद्धिजीवियों और वैज्ञानिकों को छोड़िए दीनी उल्मा तक की निशानियों को सामने लाया जा रहा है
उंदलुस के मशहूर आलिम व ज़ाहिरी फिक़ह के इमाम अल्लामा इब्ने हज़्म के हजारवें जन्मदिन के मौके पर सन् 1994 में उनकी याद में डाक टिकट जारी किया गया उनके घर की मरम्मत करके लोगों के लिए खोल दिया गया.
यही नहीं उंदलुस के जो मुसलमान मोरक्को व अल्जीरिया चले गए थे उनमें कुछ लोग अल ज़हरा सिटी के थे और अभी तक अपने नाम में ज़हरावी लिखते हैं स्पेन सरकार उन्हें कुछ जरूरी दस्तावेज देख कर अपनी नागरिकता दे रही है उन्हें लालच दिया जा रहा है कि वह वापस आ जाएं
