वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद विवाद मामले में अब जमीयत उलमा-ए-हिंद के चीफ मौलाना महमूद असद मदनी भी कूद पड़े हैं। मदनी ने बुधवार को मुस्लिम संगठनों से ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में हस्तक्षेप नहीं करने को कहा है।
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद मामले पर फिलहाल सार्वजनिक और न्यायिक दोनों स्तरों पर बहस चल रही है।
मदनी ने एक आधिकारिक बयान में कहा, कुछ नापाक तत्व और पक्षपाती मीडिया धार्मिक भावनाओं को भड़काकर दोनों समुदायों के बीच कलह पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं। मदनी ने मुस्लिम संगठनों से कहा कि उन्हें ज्ञानवापी मस्जिद के मुद्दे पर सड़कों पर उतरने की जरूरत नहीं है और सभी तरह के सार्वजनिक प्रदर्शनों से बचने की भी अपील की है।
मदनी ने कहा कि इस मामले में मस्जिद इंतेज़ामिया कमेटी (मस्जिद प्रबंधन समिति) देश के विभिन्न न्यायालयों में एक पक्ष है। माना जा रहा है कि वे इस केस को अंत तक मजबूती से लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि देश के अन्य मुस्लिम संगठनों से आग्रह है कि वे इस मामले में किसी भी अदालत में सीधे हस्तक्षेप न करें। अगर वे मामले में मदद या सहायता देना चाहते हैं तो वे मस्जिद इंतजामिया कमेटी के जरिए ऐसा कर सकते हैं।
मदनी ने इस मामले में उलमा, वक्ताओं और टीवी डिबेटर्स से इस मुद्दे पर बहस और चर्चा में हिस्सा लेने से परहेज करने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक और सोशल मीडिया पर भड़काऊ बहस देश या राष्ट्र के सर्वोत्तम हित में नहीं है।
1991 में वाराणसी की एक अदालत में दायर एक याचिका में दावा किया गया था कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण औरंगजेब के आदेश पर 16 वीं शताब्दी में उनके शासनकाल के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर के एक हिस्से को ध्वस्त करके किया गया था।
फिलहाल यह विवाद को उस समय हवा मिल गई जब पांच हिंदू महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के भीतर श्रृंगार गौरी और अन्य मूर्तियों की नियमित पूजा करने की मांग की। जिसके बाद कोर्ट ने पूरे परिसर की वीडियो ग्रॉफी कराने का आदेश दिया था। फिलहाल कोर्ट इस मामले पर सुनवाई कर रहा है।