वाराणसी, 18 मई। काशी में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद इस समय में चर्चा के केंद्र में है। जिस तरह से कोर्ट के आदेश पर मस्जिद के भीतर एएसआई की टीम ने सर्वे किया और इसके भीतर शिवलिंग पाए जाने का दावा किया जा रहा है उसके बाद इसको लेकर कई तरह के सवाल खड़े किए जा रहे हैं।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर कोर्ट में साबित हो गया कि मस्जिद के भीतर शिवलिंग हैं, हिंदू धर्म से जुड़े अहम धरोहर हैं तो क्या होगा। अगर इस सवाल को देश के संविधान और कानून के अनुसार जवाब दिया जाए तो शायद आपकी शंका का हल मिल सकता है।
ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर शिवलिंग मिलने के दावे के बाद देश की सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी के डीएम को निर्देश दिया है कि वह इस जगह को पूरी तरह से सुरक्षित किया जाए। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है कि उस जगह को सुरक्षित रखने के साथ ही मुसलमानों को मस्जिद में जाने के अधिकार और नमाज को पढ़ने के अधिकार से कतई वंचित ना किया जाए।
सोमवार को स्थानीय कोर्ट ने आदेश दिया था कि मस्जिद के भीतर सिर्फ 20 मुसलमानों को ही नमाज पढ़ने के लिए जाने दिया जाए, लेकिन उन्हें अंदर उस जगह पर वजू करने की इजाजत नहीं होगी जहां पर शिवलिंग होने का दावा किया जा रहा है।
हालांकि कोर्ट ने मस्जिद के भीतर सर्वे का आदेश दिया था, लेकिन मुस्लिम पक्ष का दावा है कि यह 1991 के वर्शिपएक्ट का उल्लंघन है। यहां ध्यान देने वाली बात है कि 1991 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में देश की संसद ने यह कानून बनाया था। उस वक्त देश में रामजन्मभूमि आंदोलन चल रहा था। भाजपा ने उस वक्त इस बिल का विरोध किया था। इस एक्ट के अनुसार 15 अगस्त 1947 के बाद किसी भी धार्मिक स्थल के प्राकृतिक स्वरूप को बदला नहीं जा सकता है। चूंकि बाबरी मस्जिद का मामला कोर्ट में लंबित था इसलिए उसे इस एक्ट से अलग रखा गया था।
यहां एक बात और ध्यान देने वाली है कि 1991 एक्ट के अनुसार अगर कोई स्मारक या बिल्डिंग 100 से अधिक पुरानी है तो एएसआई इसे संरक्षित कर सकता है। लेकिन एएसआई इसके स्वरूप में बदलाव नहीं कर सकता है और ना ही यह फिर किसी धर्म विशेष से जुड़ा रहेगा। नियम के अनुसार अगर कोई स्मारक एएसआई के पास जाती है तो वहां पर धार्मिक कार्यक्रम नहीं हो सकते हैं। यानि ज्ञानवापी मस्जिद अगर एएसआई के पास जाती है तो वहां ना तो नमाज हो सकती है और ना ही पूजा और ना ही इसे मंदिर में तब्दील किया जा सकता है। हालांकि एएसआई कुछ सीमित लोगों को इसके भीतर नमाज और पूजा की अनुमति दे सकता है, जैसा की ताजमहल और उन्नाव के पास स्थित एक मंदिर के मामले में होता है।
इस एक्ट में उन तमाम धार्मिक जगहों का लाया गया, जिसपर हिंदू धर्म को मानने वाले लोग दावा करते हैं, फिर चाहे वह काशी का ज्ञानवापी मस्जिद हो, मथुरा की मस्जिद हो। हालांकि केंद्र में भाजपा की सरकार के पास नंबर है कि वह इस एक्ट में संशोधन कर सकती है। लेकिन भाजपा सरकार के सामने मुश्किल चुनौती यह है कि देश का कोई धर्म नहीं है और संविधान में कहीं भी धर्म का जिक्र नहीं है, साथ ही सेक्युलर शब्द देश के संविधान में शामिल है और यह संविधान के मूल प्रकृति का हिस्सा है। जिसे चुनौती देना थोड़ा मुश्किल होगा। बहरहाल यह देखने वाली बात होगी कि आने वाले समय में भाजपा सरकार और कोर्ट इस मामले में किस तरह की नजीर पेश करती है।