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Tuesday, April 23, 2024

यति नरसिंहानंद ने धर्म संसद करने से लिया संन्यास, वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र त्यागी से मांगी माफी

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महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी ने धर्म संसद से नाता तोड़ लिया है। उन्होंने जिहाद के खिलाफ कोई धर्म संसद आयोजित न करने का ऐलान करते हुए कहा कि वह और उनके शिष्यों ने अब सार्वजनिक जीवन छोड़कर धार्मिक जीवन जीने का फैसला किया है।

गुरुवार को हरिद्वार में मीडिया को जारी बयान में नरसिंहानंद ने कहा कि धर्म संसद को लेकर उन्हें अपनों के बीच ही अपमानित होना पड़ा है। इसलिए उन्होंने अब कोई भी धर्म संसद नहीं करने का फैसला लिया है। उन्होंने मुद्दों को समाज का साथ नहीं मिल पाने पर वसीम रिजवी से माफी भी मांगी।

यति नरसिंहानंद ने कहा कि जितेंद्र त्यागी उर्फ वसीम रिजवी के सम्मान के लिए खुद एक महीने जेल में रहकर आए। वसीम रिजवी की जमानत के लिए चार महीने से ज्यादा कानूनी लड़ाई लड़ी। इस पूरी लड़ाई में हिंदू समाज की जितेंद्र त्यागी जैसे योद्धा के प्रति उदासीनता से खिन्न होकर उन्होंने अपने बचे हुए जीवन को महादेव के महायज्ञ और योगेश्वर श्रीकृष्ण की श्रीमद्भगवद् गीता को समर्पित करने का संकल्प लिया है।

यति नरसिंहानंद हिन्दू समाज से खिन्न
धर्मसंसद आयोजित कर हिन्दूओं को जागरूक करने का प्रयास करने वाले महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी अपने ही समाज से बेहद नाराज हैं। 25 साल से संघर्ष कर रहे यति का कहना है कि, वे किसके लिए लड़ रहे हैं, इसका पता ही नहीं चल पा रहा है। जिस समाज के लिए वे लड़ रहे हैं उसने ऐसे समय में हमें अनदेखा किया, जब सरेआम एक समाज उनकी हत्या की साजिश रच रहा है। 

हिन्दुस्तान से बातचीत में नरसिंहानंद ने कहा कि, हिन्दू धर्म की दुर्दशा के जिम्मेदार संत ही हैं। क्योंकि हिन्दुओं पर जुल्म के खिलाफ संत कभी मुंह नहीं खोलते। मेरी हत्या करने पर ईनाम रखे गए है। संत चुप बैठे हंै। वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र त्यागी की जमानत के लिए संत आगे नहीं आए। तो उन्हें अपने परिवार के लोगों को जमानत देने के लिए कोर्ट भेजना पड़ा। यति नरसिंहानंद ने कहा कि धर्म संसद के नाम पर कई ऐसे फ्रॉड है जो हिन्दुओं के लिए लड़ने की कोरी बात कर रहे है। ऐसे संत और समाज के लिए लड़ने का कोई फायदा नहीं है। 

2013 में देवबंद में की थी पहली धर्म संसद
यति नरसिंहानंद ने सबसे पहली धर्मसंसद 6 सितंबर 2013 को देवबंद में की थी। इसके बाद 15 मई 2015 को हरिद्वार, दिल्ली, गुड़गाव, उज्जैन समेत कम से कम दस स्थानों पर वह धर्म संसद कर चुके है। आखिरी धर्म संसद बीते माह अप्रैल में ऊना में आयोजित की गई थी। हरिद्वार में पिछले साल दिसंबर में आयोजित धर्मसंसद करने के बाद मिली सफलता पर धर्म संसद कोर कमेटी तक बना दी गई थी।    

कौन हैं महंत यति
महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती का नाम पहले दीपक त्यागी था। जानकारी के मुताबिक महंत बनने से पहले उन्होंने रूस के मास्को से एमटेक की पढ़ाई की। भारत लौटने के बाद उनकी पहचान कट्टर हिंदू नेता के रूप में उभरी। यति नरसिंहानंद गिरि देवी मंदिर डासना गाजियाबाद के पीठाधीश्वर हैं।

तीन दिवसीय धर्म संसद ने बदला माहौल
बीते साल दिसंबर माह में हरिद्वार में आयोजित तीन दिवसीय धर्मसंसद में हेट स्पीच को लेकर देश के साथ ही बाहरी देशों में भी तल्ख टिप्पणी सामने आई थी। मामला दर्ज होने के साथ एसआईटी भी गठित की गई। मामले में पहले जितेंद्र त्यागी उर्फ वसीम रिजवी को गिरफ्तार किया गया। मामले में यति नरसिंहानंद को 16 जनवरी को गिरफ्तार किया गया था। 16 फरवरी को वह जमानत पर रिहा हुए। 

पहले ही पड़ गए थे अलग-थलग
जेल से जमानत पर रिहा होने के बाद जब यति नरसिंहानंद सर्वानंद घाट पर जितेंद्र त्यागी उर्फ वसीम रिजवी के पक्ष में धरने पर बैठे तो धर्म संसद कोर कमेटी के वरिष्ठ संतों ने उधर से यह कहकर मुंह फेर लिया था कि यति अपनी मर्जी से बैठे हैं। तीन-चार दिन तक जब कोई सदस्य मौके पर नहीं गया तो यति वहां से उठकर पदयात्रा करते हुए दिल्ली रवाना हो गए। धर्म परिवर्तन कर वसीम रिजवी को जितेंद्र त्यागी का नाम देने का श्रेय यति को ही जाता है।

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Jamil Khan
Jamil Khanhttps://reportlook.com/
journalist | chief of editor and founder at reportlook media network

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