अक्षय कुमार की फिल्म ‘राम सेतु’ रिलीज होने से पहले ही विवादों में घिर गई है। बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी ने अक्षय कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और मुकदमा करने की तैयारी में हैं। स्वामी ने एक ट्वीट कर कहा कि फिल्म ‘राम सेतु’ में तथ्यों से छेड़छाड़ की गई है और भ्रामक जानकारी दी गई है। उनके सहयोगी वकील सत्या सभरवाल ने अक्षय कुमार और फिल्म को प्रोड्यूस करने वाली कंपनी कर्मा मीडिया के खिलाफ हर्जाने के लिए मुकदमा करने जा रहे हैं। दस्तावेज तैयार कर लिये गए हैं।
स्वामी ने एक अन्य ट्वीट में अक्षय कुमार की नागरिकता का मसला भी उठाया और खिंचाई की। उन्होंने लिखा, ‘अगर अभिनेता अक्षय कुमार एक विदेशी नागरिक हैं तो हम उनकी गिरफ्तारी की मांग भी करेंगे। साथ ही उन्हें भारत से बेदखल कर उस देश में भेजने को भी कहेंगे जहां की नागरिकता ले रखी है। आपको बता दें यह पहला मौका नहीं है जब अक्षय कुमार की नागरिकता पर सवाल उठे हैं।
अक्षय कुमार की नागरिकता पर पहले भी कई बार विवाद हो चुका है। हालांकि एक इंटरव्यू में उन्होंने कनाडा की नागरिकता पर सफाई देते हुए कहा था कि जब उनकी फिल्में नहीं चलती थीं तो कनाडा चले थे। बाद में फिल्म चली तो वापस आ गए। उन्होंने कहा था कि, ‘मैं दिलो-जान से भारतीय हूं, सिर्फ पासपोर्ट से कुछ नहीं बदलता है।’
फिल्म के किस हिस्से पर है विवाद?
सुब्रमण्यम स्वामी के ट्वीट के बाद एडवोकेट सत्या सभरवाल ने भी एक ट्वीट किया और बताया कि फिल्म के किस हिस्से पर आपत्ति है। उन्होंने लिखा कि ‘राम सेतु’ पर आधारित फिल्म में डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पोस्टर की तरह इस्तेमाल किया गया है। गलत तथ्यों और हेरफेर के साथ दिखाया गया है। सभरवाल ने SC के फैसले की कॉपी भी साझा की है।
ट्विटर यूजर्स की प्रतिक्रिया:
सुब्रमण्यम स्वामी के ट्वीट पर यूजर्स भी अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। शांतिनाथ चौधरी नाम के यूजर ने सवाल किया, ‘अगर उनके (अक्षय कुमार) के पास भारतीय नागरिकता नहीं है तो इतने लंबे वक्त से भारत में कैसे रह रहे हैं। कौन सा नियम या वीजा उन्हें इसकी अनुमति देता है, कोई बताएगा क्या?’।
विकास ठाकुर नाम के यूजर ने स्वामी पर तंज कसते हुए लिखा, ‘क्या वाहियात सोच है। इस हिसाब से जिस भारतीय ने दूसरे देश की नागरिकता ले रखी है, उन्हें तो भारत में आने का कोई हक ही नही है…।’ अमोल सेन ने लिखा, ‘अक्षय कुमार आप से कहीं ज्यादा टैक्स देते हैं, ऐसे तर्क का क्या मतलब है।’