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Friday, April 26, 2024

हज़रत अली फ़रमाते हैं कि अक़लमंद की ज़बान उसके दिल के पीछे होती है : अक़लमंद इंसान की अलामतें!

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हज़रत अली फ़रमाते हैं कि अक़लमंद की ज़बान उसके दिल के पीछे होती है : अक़लमंद इंसान की अलामतें!महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने समूचे ब्रह्मांड और हर उस चीज़ की रचना की है जो कुछ भी इस ब्रह्मांड में है और जिसे भी जिस मात्रा में अक्ल की ज़रूरत थी उसे प्रदान किया है।

दूसरे शब्दों में महान ईश्वर ने इंसानों, जानवरों और परिंदों आदि सबको सबकी ज़रूरत के हिसाब से अक़्ल दिया है पर महान ईश्वर ने इंसान को सर्वश्रेष्ठ प्राणी बनाया है और जो अक़्ल उसने इंसान को दी है वह किसी को भी प्रदान नहीं की है।

आज दुनिया में जितनी भी चीज़ें आप इंसान की बनाई हुई देख रहे हैं वे सब इंसान की अक़्ल की देन हैं। महान ईश्वर ने इंसान को अक़्ल जैसी अनमोल नेअमत से नवाज़ा है और यह अक्ल है जिससे वह अपनी ज़रूरतों को पूरा करता है। अगर इंसान के पास अक़्ल न होती, या होती मगर जानवरों जैसी होती तो बस, ट्रक, हवाई जहाज़, मोबाइल और कम्प्यूटर आदि कुछ भी न होता। ज़रा सोचिये कि अगर ये सब चीज़ें न होतीं तो इंसान की ज़िन्दगी कैसी होती या जब ये सब चीज़ें नहीं थीं तो इंसान की ज़िन्दगी कैसी थी?

अक़्ल वह नेअमत है जिसकी अधिकांश लोग न तो कीमत समझते हैं और न ही उसकी कीमत दे सकते हैं। जिसने अपनी अक्ल से जितना फायदा उठाया उसने उतनी ही तरक्की की। जिस इंसान ने साइकल बनायी उसने भी अपनी अक्ल का इस्तेमाल किया और जिस इंसान ने हवाई जहाज़ बनाया उसने भी अपनी अक्ल का प्रयोग किया। कहने का मतलब यह है कि जो अपनी अक्ल से जितना लाभ उठायेगा वह उतनी ही प्रगति करेगा। वास्तव में बुद्धिमान ही धनी है। बुद्धि से ही इंसान पैसा कमाता है, हथियार बनाता है और अपने आपको मजबूत करता है और लोक- परलोक में खुद को कामयाब बनता है। अक़्ल को नबिये बातिन कहा गया है यानी बुद्धि को आत्मिक या अध्यात्मिक नबी कहा गया है।

सवाल यह पैदा होता है कि किस इंसान को बुद्धिमान कहें जबकि दुनिया वाले उस इंसान को बुद्धिमान समझते हैं जो कुछ दिनों और सालों में घर-गाड़ी खरीद ले, बैंक- बैलेंस कर ले। हमारे समाज के लोग इस तरह के इंसान को अक़लमंद समझते हैं और दूसरों के लिए इस प्रकार व्यक्तियों को उदाहरण के तौर पर पेश करते हैं जबकि महान ईश्वर और पैग़म्बरे इस्लाम स. के पवित्र परिजन अक़लमंद इंसान की पहचान व अलामत कुछ दूसरी ही चीज़ों को बयान करते हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि किसी भी मुसलमान की अक़्ल चरम पर नहीं पहुंचेगी मगर यह कि उसके अंदर दस अलामतें पायी जायें।

– अक़्लमंद इंसान की पहली अलामत यह है कि दूसरे उससे भलाई की उम्मीद व अपेक्षा रखते हैं।
– बुद्धिमान इंसान की दूसरी अलामत यह है कि लोग उसके शर और उसकी बुराई से महफूज़ व सुरक्षित रहते हैं। 
– बुद्धिमान इंसान की तीसरी अलामत यह है कि वह दूसरों के कम अच्छे कार्यों को भी बहुत ज़्यादा समझता है।
– बुद्धिमान इंसान की चौथी अलामत है कि वह अपने ज़्यादा नेक कार्यों को भी कम समझता है।
– बुद्धिमान इंसान की पांचवी अलामत यह है कि जब उससे कुछ मांगा जाता है तो वह दूसरों के मांगने से थकता नहीं है।
– बुद्धिमान इंसान की छठी अलामत यह है कि वह अपनी पूरी ज़िन्दगी ज्ञान हासिल करने से थकता नहीं। यानी हमेशा ज्ञान की तलाश में रहना बुद्धिमान इंसान की अलामत है। 
– बुद्धिमान इंसान की सातवीं अलामत यह है कि ईश्वर की प्रसन्नता हासिल करने को वह दौलत हासिल करने पर प्राथमिकता देता है।
– ईश्वर की राह में अपमान को उसके दुश्मनों के निकट हासिल होने वाली प्रतिष्ठा व इज़्ज़त पर प्राथमिकता देता है।
– बुद्धिमान इंसान बेनामी को शोहरत से अधिक दोस्त रखता है।
– बुद्धिमान इंसान हर इंसान को अपने से बेहतर समझता है।

हज़रत अली फरमाते हैं कि अक़लमंद की ज़बान उसके दिल के पीछे होती है। यानी अक़लमंद इंसान पहले सोचता है फिर बोलता है जबकि मूर्ख व बेवकूफ इंसान का दिल उसकी ज़बान के पीछे होता है यानी पहले ज़बान होती है फिर दिल। हज़रत अली के कहने का मतलब यह है कि बेवकूफ इंसान पहले बोलता है फिर सोचता है जबकि बुद्धिमान इसका उल्टा करता है यानी पहले सोचता है फिर बोलता है।

यहां एक बिन्दु का उल्लेख ज़रूरी है और वह यह है कि कुछ लोग ज़्यादा बोलने वालों को अकलमंद समझते हैं जबकि एसा नहीं है। जो लोग ज़्यादा बोलते हैं उनसे ग़लतियां और गुनाह अधिक होते हैं और जिससे गुनाह अधिक होते हैं उसका ईमान खत्म व कमज़ोर होने लगता है और अगर यह सिलसिला जारी रहता है तो एक मंज़िल वह भी आ जाती है जब वह नाम का ईमानदार रह जाता है और उसका अंजाम नरक हो जाता है। अतः अकलमंद इंसान कम बोलता है और वही बोलता है जो ज़रूरी होता है। हर वह चीज़ नहीं बोलता है जो उसे मालूम होती है बल्कि वही बोलता है जो ज़रूरी होता है। इसीलिए रिवायतों में ख़ामोशी को हिकमत का दरवाज़ा कहा गया है।

12- हज़रत अली फरमाते हैं कि जब बुद्धि मुकम्मल व परिपूर्ण हो जाती है तो बात कम हो जाती है। सारांश यह कि बुद्धिमान इंसान की एक अलामत यह है कि वह कम बोलता है।

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