एक अमरीकी इतिहासकार ऑडरी ट्रस्चके की किताब ‘औरंगज़ेब-द मैन एंड द मिथ’ में बताया गया कि ये तर्क ग़लत है कि औरंगज़ेब ने मंदिरों को इसलिए ध्वस्त करवाया क्योंकि वो हिंदुओं से नफ़रत करता था.
ट्रस्चके जो कि नेवार्क के रूटजर्स विश्वविद्यालय में दक्षिण एशिया इतिहास पढ़ाती हैं, लिखती हैं कि औरंगज़ेब की इस छवि के पीछे अंग्रेज़ों के ज़माने के इतिहासकार ज़िम्मेदार हैं जो अंग्रेज़ों की फूट डालो और राज करो नीति के तहत हिंदू मुस्लिम वैमनस्य को बढ़ावा देते थे. इस किताब में वो ये भी बताती हैं कि अगर औरंगज़ेब का शासन 20 साल कम हुआ होता तो उनका आधुनिक इतिहासकारों ने अलग ढंग से आकलन किया होता.
49 साल भारत पर राज
औरंगज़ेब ने 15 करोड़ लोगों पर करीब 49 साल तक राज किया. उनके शासन के दौरान मुग़ल साम्राज्य इतना फैला कि पहली बार उन्होंने करीब करीब पूरे उपमहाद्वीप को अपने साम्राज्य का हिस्सा बना लिया.
ट्रस्चके लिखती हैं कि औरंगज़ेब को एक कच्ची कब्र में ख़ुलदाबाद, महाराष्ट्र में दफ़न किया गया, जबकि इसके ठीक विपरीत हुमांयू के लिए दिल्ली में लाल पत्थर का मक़बरा बनवाया गया और शाहजहाँ को आलीशान ताजमहल में दफ़नाया गया.
उनके अनुसार ‘ये ग़लतफ़हमी है कि औरंगज़ेब ने हज़ारों हिंदू मंदिरों को तोड़ा. ज्यादा से ज़्यादा कुछ दर्जन मंदिर ही उनके सीधे आदेश से तोड़े गए. उनके शासनकाल में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिसे हिंदुओं का नरसंहार कहा जा सके. वास्तव में औरंगज़ेब ने अपनी सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर हिंदुओं को आसीन किया.’
साहित्य से था औरंगजेब को लगाव
औरंगज़ेब का जन्म 3 नवंबर,1618 को दोहाद में अपने दादा जहाँगीर के शासनकाल में हुआ था. वो शाहजहाँ के तीसरे बेटे थे. उनके चार बेटे थे और इन सभी की माँ मुमताज़ महल थीं. औरंगज़ेब ने इस्लामी धार्मिक साहित्य पढ़ने के अलावा तुर्की साहित्य भी पढ़ा और हस्तलिपि विद्या में महारत हासिल की. बाकी मुगल बादशाहों की तरह औरंगज़ेब भी बचपन से ही धाराप्रवाह हिंदी बोलते थे.
कम उम्र से ही शाहजहाँ के चारों बेटों में मुग़ल सिंहासन पाने की होड़ लगी हुई थी. मुग़ल मध्य एशिया की उस रीति को मानते थे जिसमें सभी भाइयों का राजनीतिक सत्ता पर बराबर का दावा हुआ करता था. शाहजहाँ अपने सबसे बड़े बेटे दारा शिकोह को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे, लेकिन औरंगज़ेब का मानना था कि मुग़ल सल्तनत के सबसे योग्य वारिस वो हैं.
ऑडरी ट्रस्चके एक घटना का ज़िक्र करती हैं कि दारा शिकोह की शादी के बाद शाहजहाँ ने दो हाथियों सुधाकर और सूरत सुंदर के बीच एक मुकाबला करवाया. ये मुगलों के मनोरंजन का पसंदीदा साधन हुआ करता था. अचानक सुधाकर घोड़े पर सवार औरंगज़ेब की तरफ़ अत्यंत क्रोध में दौड़ा. औरंगज़ेब ने सुधाकर के माथे पर भाले से वार किया जिससे वो और क्रोधित हो गया.