पंजाब के पूर्व डीजीपी मोहम्मद मुस्तफा ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू के सलाहकार के रूप में काम करने से इनकार कर दिया है। नवजोत सिद्धू ने बुधवार को अपने लिए चार सलाहकारों की नियुक्ति का एलान किया था। इन चार सलाहकारों में पूर्व डीजीपी मुस्तफा का नाम भी शामिल था।
गुरुवार को मुस्तफा ने सलाहकार का पद लेने से इनकार करते हुए कहा कि वह किसी भी सियासी ओहदे पर काम नहीं कर सकते। उन्होंने यह भी कहा कि वह नवजोत सिद्धू के आभारी हैं, जिन्होंने उन्हें इस पद की पेशकश की। लेकिन वह इस ओहदे को स्वीकार नहीं कर सकते।
सलाहकारों में एक रह चुका अकालियों का कट्टर समर्थक, एक गैर कांग्रेसी
पंजाब कांग्रेस के नवनियुक्त प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने लिए चार सलाहकारों की नियुक्ति की थी। इस फैसले से पंजाब कांग्रेस के नेता हैरान थे। पार्टी में चर्चा है कि जब चार कार्यकारी प्रधान हैं तो सिद्धू को सलाहकारों की क्या जरूरत आन पड़ी। वहीं, सिद्धू ने यह कदम ऐसे समय में उठाया है जब मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह दिल्ली में थे। सिद्धू के चार सलाहकारों में पूर्व डीजीपी मोहम्मद मुस्तफा, मालविंदर सिंह माली, डॉ. प्यारेलाल गर्ग और सांसद डॉ. अमर सिंह का नाम शामिल था। अब पूर्व डीजीपी मोहम्मद मुस्तफा ने इस पद को लेने से इनकार कर दिया है।
इन नियुक्तियों से नया विवाद भी खड़ा हो गया है। अध्यापक पद से सेवानिवृत्त मालविंदर सिंह माली शिरोमणि अकाली दल के कट्टर समर्थक रहे हैं। प्रकाश सिंह बादल सरकार के समय माली का ज्यादा समय बादल के मीडिया सलाहकार हरचरण सिंह बैंस के साथ गुजरा है। इससे पहले वे गुरचरण सिंह टोहड़ा के साथ ही अकाली मुहिम में शामिल रहे हैं।
डॉ. प्यारेलाल गर्ग भी गैर कांग्रेसी हैं। गर्ग के पास कांग्रेस की प्रारंभिक सदस्यता भी नहीं है। यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या पूर्व डीजीपी मुस्तफा ने कांग्रेस ज्वॉइन कर ली है। सिद्धू के फैसले से प्रदेश कांग्रेस में हलचल मच गई है। सिद्धू ने सलाहकारों की नियुक्ति को लेकर जारी बयान में कहा, जिनको सलाहकार नियुक्त किया, उनका मैं व्यक्तिगत रूप से उनके दृष्टिकोण और प्रत्येक पंजाबी के लिए बेहतर भविष्य को लेकर काम करने के लिए बहुत सम्मान करता हूं।
अब भी कैप्टन से नहीं मिल रहे सिद्धू के सुर
नई दिल्ली में मंगलवार को कैप्टन ने सोनिया गांधी से मुलाकात के दौरान नवजोत सिद्धू का कारगुजारी का ब्योरा पेश किया था। कैप्टन ने बताया कि सिद्धू राज्य में अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ मुखर हैं। क्योंकि, सिद्धू ने प्रधान पद संभालने के बाद भी मुख्यमंत्री के कामकाज को निशाने पर ले रखा है।
जिला स्तर पर पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को साथ जोड़ने के लिए व्यक्तिगत मुहिम भी चला रहे हैं। प्रधान बनने के बाद सिद्धू अब तक केवल एक बार मुख्यमंत्री से मिलने गए। उस मौके पर भी मुख्यमंत्री को जनता से किए उन वादों की सूची सौंपी, जो अब तक पूरे नहीं हो सके हैं। सिद्धू ने इस सूची को सोशल मीडिया पर सार्वजनिक भी कर दिया।