दिल्ली उच्च न्यायालय ने सैयद वसीम रिजवी द्वारा लिखित पुस्तक मुहम्मद के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। याची ने आरोप लगाया था कि पुस्तक में पैगंबर मोहम्मद, इस्लाम और कुरान के संबंध में भड़काऊ बयान हैं।
कमर हसनैन द्वारा दायर याचिका में रिजवी को भविष्य में इस तरह के कृत्यों को रोकने के लिए 2,05,00,000 रुपये का हर्जाना देने की मांग की गई थी। इसके अलावा याची ने वसीम रिजवी को इस तरह के भड़काऊ बयान देने या उन्हें किसी भी मंच पर प्रकाशित करने से रोकने के लिए स्थायी रोक की मांग की गई थी। याचिका में वसीम रिजवी को किसी भी माध्यम से किताब को बेचने, प्रसारित करने या वितरित करने से रोकने के लिए स्थायी रोक लगाने की भी मांग की गई थी।
व्यक्तिगत क्षमता में दायर की गई है याचिका
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा कि एक व्यक्तिगत कानूनी अधिकार होना चाहिए, एक व्यक्तिगत कानूनी चोट जो वर्तमान मुकदमे को बनाए रखने के लिए वास्तविक क्षति को जन्म देती है। वादी ने इस्लाम के अनुयायियों की ओर से अनिवार्य और स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की है लेकिन कोई ठोस साक्ष्य नहीं।
याची के वकील ने तर्क रखा कि उनके मुवक्किल ने अपनी व्यक्तिगत क्षमता में याचिका दायर की है और उक्त पुस्तक की सामग्री से व्यथित है और उसे लगता है कि उसकी धार्मिक भावनाओं का अपमान किया गया है, इसलिए वह अपने अधिकार का प्रयोग करना चाहता है। उन्होंने कहा उक्त पुस्तक मुहम्मद की सामग्री ने मुस्लिम के रूप में वादी की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है।
पीठ ने कहा कि सुनवाई के दौरान कहा पेश किए गए प्रस्तावों के समर्थन में अदालत के समक्ष कोई मामला कानूनन नहीं रखा गया। अभद्र भाषा के संबंध में विधि आयोग की रिपोर्ट का और संदर्भ दिया गया, लेकिन उसका भी कोई परिणाम नहीं निकला।