महाराष्ट्र में रज़ा अकादमी और तहफ़ुज़ नमूस-ए-रिसालत बोर्ड व प्रकाश अंबेडकर के नेतृत्व वाले वंचित बहुजन अघाड़ी (VBA) ने महाराष्ट्र सरकार पर ‘पैगंबर मुहम्मद ﷺ बिल’ लाने के लिए कहा है। ताकि पैगंबर मुहम्मद ﷺ समेत दूसरे धर्मों के प्रतीकों के खिलाफ ईशनिंदा कानून लाया जा सके।
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस बिल के ड्राफ्ट को तैयार कर लिया गया है। इस बिल को ‘पैगंबर मुहम्मद ﷺ बिल’ के रूप प्रमोट किया जा रहा है। इसका टाइटल ‘पैगंबर मुहम्मद ﷺ और अन्य धार्मिक प्रमुखों की निंदा अधिनियम, 2021’ या ‘अभद्र भाषा (रोकथाम) अधिनियम, 2021’ रखा गया है।
महाराष्ट्र में अपना दबदबा रखने वाले मुस्लिम संगठन रज़ा अकादमी ने एक तरह से चेतावनी दी है कि ‘तहफ़ुज़ ए नमूस ए रिसालत’ विधेयक विधानसभा में पारित किया जाए। अन्यथा वो देशव्यापी विरोध प्रदर्शन करेंगे।
वहीं ऑल इंडिया सुन्नी जमीयतुल उलेमा के अध्यक्ष मौलाना मोइन अशरफ कादरी (मोइन मियाँ) ने कहा, “यह हमारा सुझाव है, लेकिन सरकार इस बिल को जो नाम देना चाहे दे सकती है। हमारी माँग है कि हमारे पवित्र पैगंबर ﷺ और सभी देवी-देवताओं और धर्मगुरुओं की निंदा, उपहास और अपमान को रोकने के लिए कड़ा कानून होना चाहिए। साम्प्रदायिक लड़ाइयाँ इसलिए हो रही हैं क्योंकि हमारा मौजूदा कानून उपद्रवियों को रोक पाने में असफल है।”
संविधान की धारा 295 (A) और ‘ग़ुस्ताख़ ए रसूल’ का केस
भारत में ईशनिंदा से जुड़ा कोई कानून नहीं है। लेकिन, भारतीय दंड संहिता में एक कानून ऐसा है जो जानबूझकर किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वालों के खिलाफ जेल और जुर्माने का प्रावधान करता है। आईपीसी की धारा 295 (A) के तहत अगर आरोपित ने ‘जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे से’ किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाई है तो उसे जुर्माने के साथ 3 साल तक की सजा हो सकती है।
इंडियन पीनल कोड की धारा 295 (A) का मामला बहुत ही दिलचस्प रहा है। इसकी शुरुआत वर्ष 1923 में गुलाम भारत में हुई थी।
उस दौरान राजपाल नामक प्रकाशक के करीबी दोस्त पंडित चामुपति लाल ने पैगंबर मोहम्मद ﷺ की शान में गुस्ताखी करते हुए एक किताब लिखी जिसमें जान बूझ कर गलत भाषा का इस्तेमाल किया गया था। इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए पंडित चामुपति ने डर के कारण राजपाल से वादा लिया कि वह कभी भी इसके लेखक का नाम मतलब उसका उजागर नहीं करेंगे।
लेकिन इससे लाहौर के मुस्लिम पूरी तरह से आक्रोशित हो उठे। इसके प्रकाशित होने के करीब एक महीने के बाद जून 1924 में महात्मा गाँधी ने अपने साप्ताहिक ‘यंग इंडिया’ जर्नल में इसकी कड़ी निंदा करते हुए कहा था कि यह राष्ट्रीय मुद्दा बन गया है।
इस मामले में लाहौर उच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा था कि यह लेख मुस्लिम समुदाय को ‘आक्रोशित’ करने वाला था। कानूनी तौर पर इसका अभियोजन इसलिए संभव नहीं है, क्योंकि धारा 153 (A) के तहत लेखन विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच दुश्मनी या नफरत का कारण नहीं बन सकता। कोर्ट के फैसले के बाद मुस्लिमों के आक्रोश ने अंग्रेजो को कानून बदलने और धारा 295 (A) लागू करने के लिए मजबूर कर दिया था।
घटना के बाद 6 सितंबर, 1929 को इल्म उद दीन नाम के एक 19 वर्षीय मुस्लिम बढ़ई ने अपनी दुकान के बाहरी बरामदे में बैठे हुए राजपाल की छाती पर आठ बार हमला किया। चोट लगने से राजपाल की मौत हो गई।
पैग़म्बर मोहम्मद सल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी करने वाले राजपाल को मौत के घाट उतारने वाले इल्म उद दीन को ‘गाजी’ के लक़ब से नवाज़ा गया। पाकिस्तान में उनकी एक मजार भी है। मजार में वार्षिक उर्स आयोजित किया जाता है। वहाँ पर मुस्लिम ‘गाजी इल्म उद दीन’ को श्रद्धाँजलि देते हैं।