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Friday, March 29, 2024

नमाज के लिए घटती जगह, हिंदू-मुस्लिम में बढ़ती खाई

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भारत में अल्पसंख्यकों के लिए जगह घटती जा रही है. उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर प्रार्थना करने से लेकर अपना धंधा चलाने आदि तक से रोका जा रहा है. मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि यह सिर्फ जगह की लड़ाई नहीं है.शुक्रवार की शामें दिल्ली से सटे गुड़गांव में रहने वाले मुसलमानों के लिए सामुदायिक नमाज का वक्त होती हैं. सबके जमा होने के लिए जगह चाहिए, जो पिछले कई साल से प्रशासन उन्हें उपलब्ध करवाता रहा है. पार्कों या खाली पड़ी जमीनों पर नमाज अदा होती रही है. लेकिन पिछले कुछ वक्त से सब बदल गया है. अब जैसे ही मुसलमान नमाज के लिए जमा होते हैं, उनका विरोध करने वाले और उन्हें हटाने वाले हिंदू संगठन चले आते हैं. नमाज के वक्त में वहां नारे लगाए जाते हैं और गाली-गलौज की नौबत आ जाती है. इस फसाद के चलते प्रशासन ने सार्वजनिक जगहों पर नमाज के लिए दी इजाजत वापस ले ली है. देखिए, दुनिया की दस सबसे बड़ी मस्जिदें 2014 में हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद से भारत में हिंदू-मुस्लिम खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है. बड़ी संख्या में सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता आरोप लगाते रहे हैं कि प्रशासन और अधिकारी अल्पसंख्य समुदायों के खिलाफ कट्टर हिंदू संगठनों का पक्ष लेते हैं. नमाज से दिक्कत क्यों? थिंक टैंक ‘वर्ल्ड रिसॉर्सेज इंस्टिट्यूट इंडिया’ की प्रेरणा मेहता कहती हैं, “जगह तो कम है, इसलिए यह सवाल तो हमेशा बना रहता है कि विभिन्न सामुदायिक गतिविधियों के लिए अलग-अलग संगठनों को इसे कैसे उपलब्ध कराया जाए.
लेकिन शहरों में सार्वजनिक जगह कैसे किसी को दी जाती हैं इस लेकर हमेशा वर्गीकरण होता है. गरीब और कमजोर वर्ग या अल्पसंख्यक समुदायों के लिए जगह की उपलब्धता औरों से कम है.” भारत में 14 प्रतिशत मुसलमान हैं जबकि 1.3 अरब आबादी वाले देश में 80 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की है. देशभर में आमतौर पर सार्वजनिक स्थान अवैध झुग्गी बस्तियों, रेहड़ी ठेले वालों, बच्चों के खेलने, त्योहार मनाने, शादी-उत्सव या फिर राजनीतिक रैलियों के लिए इस्तेमाल होते रहे हैं. लेकिन गुड़गांव में नमाज के लिए उपलब्ध जगहों पर हिंदू संगठनों ने यह कहकर अन्य गतिविधियां शुरू कर दी हैं कि सार्वजनिक स्थानों को धार्मिक प्रायोजन से प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए. इसके चलते पिछले कुछ समय में नमाज के लिए उपलब्ध स्थानों की जगह 40 से घटकर लगभग आधी रह गई है. मुस्लिम एकता मंच के शहजाद खान कहते हैं, “त्योहारों की बात छोड़ दें तो जुमे की नमाज में मुश्किल से 30 मिनट लगते हैं. लेकिन मस्जिदें बहुत कम हैं इसलिए हमें बड़ी जगह की जरूरत पड़ती है. सार्वजनिक जगह सबके लिए हैं. और हम दशकों ऐसे ही नमाज पढ़ते आ रहे हैं, बिना किसी को तकलीफ दिए. अगर धार्मिक गतिविधियों की इजाजत नहीं, फिर तो हिंदुओं को भी जगह नहीं मिलनी चाहिए.
तस्वीरों में नया अफगानिस्तान प्रशासन इस आरोप को नकारता है कि हिंदुओं को जानबूझकर फायदा दिया जा रहा है. गुड़गांव के जिलाधीश यश गर्ग कहते हैं, “अभी भी बहुत जगहों पर नमाज हो रही हैं. दो-तीन जगहों पर ही विरोध हुआ है. समुदाय और प्रशासन इस विवाद का एक शांतिपूर्ण हल खोजने को प्रतिबद्ध है और हम हर संभव विकल्प पर विचार कर रहे हैं.” गुजरात मॉडल ऐसा सिर्फ हरियाणा में नहीं हो रहा है. कई राज्यों में प्रशासन द्वारा ऐसे कदम उठाए गए हैं जो अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों को ही कतरते हैं. मसलन गुजरात के अहमदाबाद में रेहड़ी ठेलों पर मांसाहारी खाना बेचने वालों को हटा दिया गया है. गुजरात में हाल ही में कई जिलों में प्रशासन ने मांसाहारी खाना बेचने वाले छोटे ठेले-रेहड़ी वालों को हटा दिया. बहुत जगह तर्क दिया गया कि वे लोग हिंदुओं की भावनाओं को आहत कर रहे थे. लेकिन पिछले महीने राज्य के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने कहा कि ये कदम भेदभावकारी नहीं थे बल्कि सड़कों से भीड़-भाड़ हटाने और खाने को लेकर स्वच्छता को बढ़ाने देने के मकसद से उठाए गए. पटेल ने मीडिया से कहा, “लोगो जो भी खाना चाहें, खा सकते हैं लेकिन ठेलों पर बेचा जा रहा खाना हानिकारक नहीं होना चाहिए और रेहड़ियों से ट्रैफिक बाधित नहीं होना चाहिए.” पूरे देश की स्थिति मानवाधिकार कार्यकर्ता इन कदमों को पूरे देश के माहौल से जोड़कर देखते हैं जबकि मुसलमानों के साथ कई निर्मम घटनाएं हो चुकी हैं.
कई बार लोगों को घरों में घुसकर या राह चलते पीट-पीटकर मार डाला गया. और ऐसे भी आरोप हैं कि हिंदुत्वादी संगठनों की गतिविधियां त्योहारों के नाम पर बहुत ज्यादा आक्रामक हो गई हैं. सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी ऐंड सेक्यलरिजम की उप निदेशक नेहा दाभाड़े कहती हैं, “ऐसी घटनाएं दिखाती हैं कि जब बात हिंदुओं की होती है तो धार्मिक भावनाओं के दिखावे में किसी तरह का संयम नहीं बरता जाता. सार्वजनिक जगहों पर सबका बराबर हक होना चाहिए और वह इस तरह होना चाहिए कि बाकियों को असुविधा ना हो. लेकिन एक प्रतिद्वन्द्विता लगातार बढ़ रही है जिसका स्वभाव सांप्रदायिक है. और एक ऐसी भावना का प्रसार हो रहा है कि मुसलमानों को सार्वजनिक जगहों पर नहीं होना चाहिए.” हर धर्म में है सिर ढकने की परंपरा गुड़गांव में कुछ हिंदुओं ने अपने घर और दुकानें मुसलमानों को नमाज के लिए उपलब्ध करवा दिए. सिखों ने गुरुद्वारे में नमाज अदा करने की इजाजत दे दी. खान कहते हैं, “ये बातें हमें उम्मीद बंधाती हैं. खुले में नमाज किसी के लिए पेरशानी या चिंता की बात नहीं होनी चाहिए. ये जगह सबके लिए हैं फिर चाहे वह प्रार्थना हो या क्रिकेट. और इन्हें ऐसे ही रहना चाहिए” वीके/सीके (रॉयटर्स).

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